Thursday, May 15, 2008

माझ्या चारोळ्या - माझ्याच आरोळ्या !! :-) - ( २ )

माझ्या चारोळ्या ...
......... माझ्याच आरोळ्या
माझ्या ह्या वेडेपणालाही
...... माझ्याच टाळ्या ..
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काल रात्री एका वादळाने
माझे शब्द उडऊन नेले होते ।
दमुन भागून आज तेच
माझ्या झोपडीतच झोपले होते ।
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आलचं जर डोळ्यात पाणी
तरं "हारला हा" म्हणुन दैव सुखावेल;
म्हणुन मनात असुन सुद्धा
मला मोकळेपणाने रडता येत नाही
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अश्रु आठवणींचे डोळ्यात दाटुन येतात,
तरी ओठांवर हसु पेरावे लागते ।
ही मुहोब्बत पण काय चिज आहे दोस्ता
जिच्यावर करतो तिच्यापसुनच लपवावी लागते ।
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आठवणींनी कितीही काहूर माजविले तरीही
आता भावना आवरायचं जमतयं ।
कितीहीवेला रेतीवरचे नाव पूसले सागराने तरीही
आता त्याच्याशी मैत्री करणे जमतयं ।
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आज सगळी उत्तरे आहेत
पण आता कुठलाच प्रश्न नाही ।
रडणे तर अता रोजचेच आहे
पण डोळ्यात पाणी नाही ।
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जर तुला रडु आलं तरं
दोन थेंब अश्रुचे माझ्या राखेवरती गळु देत ।
मरण माझं वाया नाही गेलं
हे जरा "त्या" जगाला तरी कळु देत ।
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कसे सांगु मी की तीला भेटण्याची आस नाही ;
आठवणींच्या डोहातल्या ह्रुदयास आजही आराम नाही ।
विसरून जावे तीला अताशा, पण काय करु दोस्ता ;
विसरावे कुणाला ह्या दिलाचा दस्तुर नाही ।
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दु:खात हसणारे कधी रडत नाही ;
लाटांपासुन पाणी वेगळे होत नाही ।
होणारे स्व:ताहून आपले असतात;
कोणी सांगून "आपले" होत नाही
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समजाऊन सांग तुझ्या आठवणींना
त्या न बोलावताच येत असतात ।
तु तर दुर रहून सतवत असतेस ;
त्या जवळ येऊन रडवत असतात ।
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आज लब्जोंनेभी हमसे बडी साजीश कि ;
हमारी शायरी को छोड अफ़सानोंसे दोस्ती कि ।
रुसवां है हमारी यादे हमारेही उल्फ़त कि;
आज तनहाई भी करने लगी सदके उन्ही की राहों कि ।
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अब इससे ज्यादा इन्तेहां इंतजार की क्या होगी ;
आखें खुली थी ओर हमे दफ़नाने की रस्म अदा हुई थी ।
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वेळ जात होता, धडकन थांबत होती
हसत होतो मी पण डोळ्यात आसवे होती ।
साथीला माझ्या तर सारा जमाना होता;
पण न जाणे का तुझीच गरज होती
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का तुकडे केलेस ह्रुदयाचे असे,
तुझ्या आठवणीत आसवेही सुकुन गेली।
तुझ्यावर प्रेम केले इतकीच का चूक होती?
का तू माझ्या आयूष्यात दर्द देउन गेली।
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मी तो जज्बा..जो बनून ह्रुदय धडकतो
मी तो सूगंध... जो मिठीत परीमळतो
मजवर असा जीव नको लाउस ग
मी तो दर्द ... जो डोळ्यातून ओघळतो..
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दुखानी हसू न दीले कधी..
जगाने रडू न दीले कधी...
प्रश्नानी जगू न दीले कधी,
थकून चांदण्यात पहूडलो जेंव्हा..
आठवानी तूझ्या झोपू न दीले कधी ....
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कसे तुला सांगू "एकांत" तो कसा
त्या पानगळीला विचार "विरह" तो कसा।
उगाच फ़सवांचा आरोप का देतेस ?
विचार तु काळालाही -
तुझी आठवण न आली तो "क्षण" कसा!
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आयुष्य अल्लड......म्हणून मी शांत आहे
असंख्य जखमांचे देणे....म्हणुन मी शांत आहे।
सांगावी म्हणतो जगाला कहाणी माझी;
येइल त्यात तुझे नाव..म्हणून मी शांत आहे।
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मंदार हिंगणे

3 comments:

HAREKRISHNAJI said...

किती सुंदर आणि अर्थपुर्ण लिहीता आपण.

Dinesh Gharat said...

सुंदर, अति सुंदर !!!


दिनेश.

http://www.sarvottam-marathi-vinod.blogspot.com

Dada said...

Khup sundar !!!



Nitin