माना के वक्त ने की बेवफ़ाई
हसरते और आरजू भी आज रूसवां हैं
पर इतनी बूरी भी तो नही सभी लोग
क्या दोस्तोंके भी दूवाओं मैं असर नही हैं ?
लब्ज तो हमेशा अपना रंग दीखाते है
खूशी हो या गम अपनीही बाजी खेलते है ।
उनसे गीला क्या, नजरीया बदलो जरा अपना ;
शायद प्यार करनेवाले आपके आसपास ही है
रूसवाई का हक्क माना आपही रखते है
और हम है की मनानेकी कोशीश करते है
जाने-अंजाने मै दिल आपका तोड बैठे;
और आप है की हमासे नफ़्रत करते है
आप तो मिट्टी का आशीयाना बनाते गये
और अफ़सानोंको हकीगत मै फ़िरोते रहैं
हम न थे हमारे कभी, थे पहेलेसे किसी और के
और आप हमे बेवफ़ा कातील बनाते रहैं
गम मैं हसने वालोंको रुलाया नही जाता
जैसे लेहेरोंसे पानीको हटाया नही जाता
होनेवाले तो बस हो जाते अपने तकदीरसे
किसी को कहकर अपना बनाया नही जाता
आखीर मैं बस इतना कहूंगा आपसे ..
कोन है जो मंजरसे दुर नही ?
कोन है जो जिंदगीसे मजबूर नही ?
गलतींया तो सभी करते है,
मेरी नजर मै खुदा भी बेकसूर नही ।
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मंदार हिंगणे
Sunday, September 21, 2008
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1 comment:
अतिशय सुन्दर....
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